Election 2023
चुनाव आयोग ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और मिजोरम में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ ही, आदर्श चुनाव आचार संहिता भी प्रभावी हो जाएगी। अब चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान नेताओं को अपनी ‘गाड़ी-घोड़े’ का इस्तेमाल बंद कर देना होगा। मंत्रियों और सरकारी बोर्ड और निगम के अधिकारियों को भी चुनाव से पहले और दौरान सरकारी वाहनों और सुविधाओं का उपयोग नहीं करने की जिम्मेदारी होगी।
सरकारी वाहनों का इस्तेमाल केवल निवास से सरकारी कार्यालय या सफर तक ही सीमित रहेगा। इसके अलावा, नेताओं को अब अपनी खुद की वाहनों में ही चलना होगा। लोकार्पण और शिलान्यास का कोई विशेष आयोजन नहीं होगा, और नामों को पत्थरों पर नहीं लिखा जाएगा। इस बदलाव के साथ, पिछले पांच सालों के ‘VVIP ट्रीटमेंट’ का भी समाप्त हो जाने का निर्णय लिया गया है। अब नेताओं को जनता के बीच ही जाना होगा।
आदर्श चुनाव आचार संहिता क्या है?
चुनाव आयोग देश और राज्यों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कुछ नियम बनाता है, जिन्हें आदर्श चुनाव आचार संहिता कहा जाता है। चुनाव के दौरान और उसके पूर्ण होने तक, इन नियमों का पालन सरकार, नेता, और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है। यह आचार संहिता चुनाव प्रक्रिया के पूरे समय के लिए लागू रहती है।
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आचार संहिता के मुख्य नियम
- किसी भी प्रकार की सरकारी घोषणा, लोकार्पण, या शिलान्यास आदि नहीं किया जाएगा।
- चुनाव प्रचार के लिए सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान, या सरकारी बंगले का उपयोग नहीं किया जाएगा।
- राजनीतिक दलों को रैली, जुलूस, या मीटिंग के लिए परमिशन लेनी होगी।
- आचार संहिता लागू होते ही दीवारों पर लिखे गए सभी पार्टी संबंधित नारे और प्रचार सामग्री के होर्डिंग, बैनर, और पोस्टर भी हटा दिए जाते हैं।
- चुनाव के दौरान योजना के तहत निधि MP-MLA फंड से नहीं जारी की जाएगी।
- सरकारी धन का उपयोग किसी विशेष राजनीतिक दल या उम्मीदवार को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकेगा।
- मतदान केंद्रों पर वोटरों को लाने के लिए गाड़ी मुहैया नहीं करवाई जा सकती है।
आचार संहिता की सबसे खास बात ये है कि ये नियम किसी कानून के जरिए नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टियों की आपसी सहमति से बनाए गए हैं। आदर्श आचार संहिता की वजह से चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और सत्ताधारी दलों के कामकाज और उनके व्यवहार पर नजर रखना संभव होता है।
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में आचार संहिता कब से कब तक लागू रहेगी?
चुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो जाती है। ये आचार संहिता इलेक्शन की पूरी प्रक्रिया खत्म होने तक जारी रहती है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान 9 अक्टूबर को किया गया। इस दिन से आचार संहिता लागू हो गई।
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आचार संहिता के दौरान कौन से काम रुक जाते हैं और कौन से चालू रहते हैं?
आदर्श आचार संहिता के चलते इन कामों पर रोक लग जाती है…
- चुनाव कार्यों से जुड़े किसी भी अधिकारी को किसी भी नेता या मंत्री से उसकी निजी यात्रा या आवास में मिलने की मनाही होती है। ऐसा करने पर उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
- सरकारी खर्चे पर किसी नेता के आवास पर इफ्तार पार्टी या अन्य पार्टियों का आयोजन नहीं कराया जा सकता है। हालांकि अपने खर्च पर वो ये कार्यक्रम कर सकते हैं।
- सत्ताधारी पार्टी के लिए सरकारी पैसे से सरकार के काम का प्रचार-प्रसार करने के लिए विज्ञापन चलाने पर भी रोक होती है।
- जिस योजना को हरी झंडी मिली है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम शुरू नहीं हुआ होता है, उस योजना पर काम स्टार्ट नहीं किया जा सकता है।
- विधायक, सांसद या विधान परिषद के सदस्य आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से नई राशि जारी नहीं कर सकते हैं।
- आदर्श आचार संहिता लगने के बाद पेंशन फॉर्म जमा नहीं हो सकते और नए राशन कार्ड भी नहीं बनाए जा सकते। हथियार रखने के लिए नया आर्म्स लाइसेंस नहीं बनेगा। BPL के पीले कार्ड नहीं बनाए जाएंगे।
- कोई भी नया सरकारी काम शुरू नहीं होगा। किसी नए काम के लिए टेंडर भी जारी नहीं होंगे। किसी नए काम की घोषणा नहीं होगी।
- इस दौरान बड़ी बिल्डिंगों को क्लियरेंस नहीं दी जाती है।
राजस्थान में चुनाव की तारीख की घोषणा
आचार संहिता लागू होने के बाद सड़क बनाने या ठीक करवाने की इजाजत होती है या नहीं?
चुनाव आयोग के मुताबिक विधायक, मंत्री या कैंडिडेट आचार संहिता लागू होने के बाद कोई आर्थिक सहायता या उससे संबंधित कोई वादा नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा आचार संहिता लागू होने के बाद किसी परियोजना अथवा योजना का शिलान्यास नहीं किया जा सकता है। सड़क बनवाने, पीने के पानी को लेकर काम शुरू करवाना तो दूर, वादा तक नहीं कर सकते हैं। जो काम पहले से चल रहा है वो आचार संहिता की वजह से बाधित नहीं होगा।
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आचार संहिता लागू होने के बाद अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कैसे होती है?
आचार संहिता लागू होने के बाद किसी भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी की ट्रांसफर पोस्टिंग सरकार नहीं कर सकती है। ट्रांसफर कराना बेहद जरूरी हो गया हो तब भी सरकार बिना चुनाव आयोग की सहमति के ये फैसला नहीं ले सकती है। इस दौरान राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त जरूरत के हिसाब से अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकते हैं।
क्या आचार संहिता के दौरान मंत्री अपने आधिकारिक दौरे के समय चुनाव प्रचार कर सकते हैं?
नहीं। आचार संहिता लागू होने के बाद मंत्री अपने आधिकारिक दौरे के समय चुनाव प्रचार नहीं कर सकते हैं। यहां तक की चुनाव प्रचार के लिए सरकारी गाड़ियों, विमानों या किसी दूसरे सुविधाओं का भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
क्या महिला आयोग या दूसरे राष्ट्रीय/राज्य आयोग के सदस्य आचार संहिता लागू होने वाले क्षेत्र का दौरा कर सकते हैं?
चुनाव आयोग का साफ आदेश है कि जब तक बहुत जरूरी न हो राष्ट्रीय और राज्य आयोग के सदस्यों को आधिकारिक दौरे से बचना चाहिए। चुनाव खत्म होने तक सभी कामकाज पर रोक लगना जरूरी है, ताकि इनके दौरे की वजह से होने वाले भ्रम से बचा जा सके।
क्या शराब के ठेकों, तेंदू की पत्तियों के टेंडर की नीलामी की जा सकती है?
नहीं। इस तरह के किसी टेंडर की नीलामी नहीं की जा सकती है। सरकार जरूरी होने पर आचार संहिता से पहले ही कोई तत्कालिक व्यवस्था कर सकती है। इसके अलावा नगर निगम, नगर पंचायत, नगर क्षेत्र समिति राजस्व संग्रहण का काम जारी रख सकती है।
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क्या चुनाव आयोग आचार संहिता लागू होने से पहले भी कार्रवाई कर सकती है?
हां, इसे 2010 के एक उदाहरण से समझा जा सकता है। तब राज्य के चुनाव आयोग के सामने यह शिकायत आई थी कि बहुजन समाज पार्टी ने सरकारी पैसे से अपने चुनाव चिह्न ‘हाथी’ की प्रतिमाएं बनवाकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है।
इस शिकायत पर चुनाव आयोग ने कहा कि आचार संहिता की समय-सीमा से बाहर किसी भी राजनीतिक दल द्वारा सरकारी शक्ति और तंत्र के कथित दुरुपयोग पर एक्शन नहीं ले सकते हैं।
चुनाव आयोग के इस रुख को दिल्ली उच्च न्यायालय में कॉमन कॉज बनाम बहुजन समाज पार्टी के रूप में चुनौती दी गई। इस मामले से जुड़े नियमों को जांच करने के बाद उच्च न्यायालय ने ये फैसला सुनाया कि चुनाव आयोग BSP के चुनाव चिह्न को अमान्य घोषित कर सकता है।
हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि सत्ताधारी पार्टी को अचार संहिता नहीं लागू होने के दौरान भी अपने निर्वाचन चिह्नों अथवा अपने नेताओं की स्थिति मजबूत करने के लिए सरकारी धन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे में कोर्ट ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया कि इस तरह के मामले से निपटने के लिए कुछ नियम और दिशा-निर्देश बनाएं।